चोट तो भर ही गई लेकिन निशाँ बाकी रहा
गाँव भर की धूप तो हँस कर उठा लेता था वो
कट गया पीपल अगर तो क्या वहाँ बाकी रहा
आग ने बस्ती जला डाली मगर हैरत है ये
किस तरह बस्ती में मुखिया का मकाँ बाकी रहा
खुश न हो उपलब्धियों पर ये भी तो पड़ताल कर
नाम है शोहरत भी है, पर तू कहाँ बाकी रहा
वक़्त की इस धुंध में सारे सिकांदर खो गए
ये ज़मि बाकी रही, बस आसमाँ बाक़ी रहा