बांसुरी दिन की
देर तक बजते रहें
ये नदी, जंगल, खेत
कंपकपी पहने खड़े हों
दूब, नरकुल, बेंत
पहाड़ों की हथेली पर
धूप हो मन की।
धूप का वातावरण हो
नयी कोंपल–सा
गति बन कर गुनगुनाये
ख़ुरदुरी भाषा
खुले वत्सल हवाओं की
दूधिया खिड़की।
देर तक बजते रहें
ये नदी, जंगल, खेत
कंपकपी पहने खड़े हों
दूब, नरकुल, बेंत
पहाड़ों की हथेली पर
धूप हो मन की।
धूप का वातावरण हो
नयी कोंपल–सा
गति बन कर गुनगुनाये
ख़ुरदुरी भाषा
खुले वत्सल हवाओं की
दूधिया खिड़की।
National Philosophy Day: This day encourages critical thinking, dialogue, and intellectual curiosity, addressing global challenges …