भये प्रगट कृपाला, दीन दयाला, कौसल्या हितकारी।
हरषित महतारी, मुनि मनहारी, अद्भुत रूप विचारी॥
लोचन अभिरामा, तनु घनस्यामा, निज आयुध भुज चारी।
भूषन वनमाला, नयन बिसाला, सोभासिंधु खरारी॥
भये प्रगट कृपाला – भावार्थ: दीनों पर दया करने वाले, कौसल्या के हितकारी कृपालु प्रभु प्रकट हुए। मुनियों के मन को हरने वाले उनके अद्भुत रूप का विचार करके माता हर्ष से भर गई। नेत्रों को आनंद देने वाला मेघ के समान श्याम शरीर था; चारों भुजाओं में अपने (खास) आयुध (धारण किए हुए) थे, (दिव्य) आभूषण और वनमाला पहने थे, बड़े-बड़े नेत्र थे। इस प्रकार शोभा के समुद्र तथा खर राक्षस को मारने वाले भगवान प्रकट हुए।
भये प्रगट कृपाला: गोस्वामी तुलसीदास
Artist: Jagjit Singh | Album: Jai Siya Ram
कह दुई कर जोरी, अस्तुति तोरी, केहि बिधि करूं अनंता।
माया गुन ग्यानातीत अमाना, वेद पुरान भनंता॥
करुना सुख सागर, सब गुन आगर, जेहि गावहिं श्रुति संता।
सो मम हित लागी, जन अनुरागी, भयौ प्रगट श्री कंता॥
भावार्थ: दोनों हाथ जोड़कर माता कहने लगी – हे अनंत! मैं किस प्रकार तुम्हारी स्तुति करूँ। वेद और पुराण तुम को माया, गुण और ज्ञान से परे और परिमाण रहित बतलाते हैं। श्रुतियाँ और संतजन दया और सुख का समुद्र, सब गुणों का धाम कहकर जिनका गान करते हैं, वही भक्तों पर प्रेम करनेवाले लक्ष्मीपति भगवान मेरे कल्याण के लिए प्रकट हुए हैं।
ब्रह्मांड निकाया, निर्मित माया, रोम रोम प्रति बेद कहे।
मम उर सो बासी, यह उपहासी, सुनत धीर मति थिर न रहे॥
उपजा जब ग्याना, प्रभु मुसुकाना, चरित बहुत बिधि कीन्ह चहे।
कहि कथा सुहाई, मातु बुझाई, जेहि प्रकार सुत प्रेम लहे॥
भावार्थ: वेद कहते हैं कि तुम्हारे प्रत्येक रोम में माया के रचे हुए अनेकों ब्रह्मांडों के समूह (भरे) हैं। वे तुम मेरे गर्भ में रहे – इस हँसी की बात के सुनने पर धीर (विवेकी) पुरुषों की बुद्धि भी स्थिर नहीं रहती (विचलित हो जाती है)। जब माता को ज्ञान उत्पन्न हुआ, तब प्रभु मुसकराए। वे बहुत प्रकार के चरित्र करना चाहते हैं। अतः उन्होंने (पूर्व जन्म की) सुंदर कथा कहकर माता को समझाया, जिससे उन्हें पुत्र का (वात्सल्य) प्रेम प्राप्त हो।
माता पुनि बोली, सो मति डोली, तजहु तात यह रूपा।
कीजे सिसुलीला, अति प्रियसीला, यह सुख पराम अनूपा॥
सुन बचन सुजाना, रोदन ठाना, होई बालक सुरभूपा।
यह चरित जे गावहि, हरिपद पावहि, तेहि न परहिं भवकूपा॥
भावार्थ: वेद कहते हैं कि तुम्हारे प्रत्येक रोम में माया के रचे हुए अनेकों ब्रह्मांडों के समूह (भरे) हैं। वे तुम मेरे गर्भ में रहे – इस हँसी की बात के सुनने पर धीर (विवेकी) पुरुषों की बुद्धि भी स्थिर नहीं रहती (विचलित हो जाती है)। जब माता को ज्ञान उत्पन्न हुआ, तब प्रभु मुसकराए। वे बहुत प्रकार के चरित्र करना चाहते हैं। अतः उन्होंने (पूर्व जन्म की) सुंदर कथा कहकर माता को समझाया, जिससे उन्हें पुत्र का (वात्सल्य) प्रेम प्राप्त हो।