मन‚ होगा दुख दूना।
जीवन में हैं सुरंग सुधियां सुहावनी
छवियों की चित्र गंध फैली मनभावनी:
तन सुगंध शेष रही बीत गई यामिनी‚
कुंतल के फूलों की याद बनी चांदनी।
भूली सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षण –
छाया मत छूना
मन‚ होगा दुख दूना।
यश है ना वैभव है मान है न सरमाया;
जितना भी दौड़ा तू उतना ही भरमाया।
प्रभुता का शरण बिम्ब केवल मृगतृष्णा है‚
हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है
जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर पूजन –
छाया मत छूना
मन‚ होगा दुख दूना।
दुविधा हत साहस है दिखता है पंथ नहीं
देही सुख हो पर मन के दुख का कुछ अंत नहीं।
दुख है न चांद खिला शरद रात आने पर‚
क्या हुआ जो खिला फूल रस वसंत जाने पर?
जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण‚
छाया मत छूना
मन‚ होगा दुख दूना।
∼ गिरिजा कुमार माथुर
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