मयस्सर हो ना रौशनी हर बाम चिराग जलते रहें।
अँधेरे खुद ही दामन ओढ़ लें आकर शुआओं के,
नूरानी जब तक न हो हर गम चिराग जलते रहें।
हमारी आँख में चमके चिराग अपनी मोहब्बत के,
दिलों में प्यार के सुबहो – शाम चिराग जलते रहें।
सजा लो लाख लड़ियाँ चमकीली दर ओ दीवारों पे,
पर अपने दहलीज़ पे घी का राम चिराग जलते रहें।
दोस्तों दिवाली मुबारक हो अनदु दिवाली मुबारक,
चला दें रिश्तों को नया आयाम चिराग जलते रहें।
रौशनी जो भी दे “दीपक” बस वो ही मशहूरियत पाएं,
ख्याल हो, ना किसी राह गुमनाम चिराग जलते रहें।
∼ दीपक शर्मा Poet & Astro-Consultant, Address: 186, 2nd Floor, Sector 5, Vaishali, Ghaziabad – 201010 (U.P)
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