दादी वाला गाँव: गाँव भारत का हृदय है। कुछ विद्वान कहते हैं कि असली भारत गाँव में है। लगभग 70% आबादी गाँव में रहती है। लोगों के कल्याण के लिए भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया अंत्योदय कार्यक्रम अंतिम पंक्ति में है। गाँव में पंचायती राज संस्थाएँ वह स्तर जहाँ वास्तविक लोकतंत्र की शक्ति का एहसास होता है क्योंकि सत्ता का विकेन्द्रीकरण हुआ है। हमारी सभ्यता कहीं न कहीं गाँव से शुरू होती है। संभावित किसान मौसमी फसल लेते हैं क्योंकि सिंचाई, बाँध का पानी, कुएँ-तालाब, पर्याप्त वर्षा जैसी जल सुविधाएँ उपलब्ध होती हैं। गाँव वह स्थान है जहाँ आंतरिक शांति का एहसास होता है। भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि उन्मुख है जो प्राथमिक क्षेत्र में आती है। 50% से अधिक वर्तमान जनसंख्या प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि में लगी हुई है।
सांस्कृतिक विकास:
गाँव में फसल कटाई के बहुत सारे त्यौहार मनाए जाते हैं। ग्रामीणों द्वारा पसंदीदा देवता की पूजा की जाती है। अनाज का कुछ हिस्सा देवता के लिए अलग रखा जाता है। गाँव के बिना एक अच्छे भारत का निर्माण नहीं किया जा सकता। बहुत सारे सामाजिक मूल्य और मानदंड हम गाँव से सीखते हैं।
दादी वाला गाँव: इंदिरा गौड़ की हिंदी कविता
पापा याद बहुत आता है
मुझको दादी वाला गाँव,
दिन दिन भर घूमना खेत में
वह भी बिल्कुल नंगे पाँव।
मम्मी थीं बीमार इसी से
पिछले साल नहीं जा पाए,
आमों का मौसम था फिर भी
छककर आम नहीं खा पाए।
वहाँ न कोई रोक टोक है
दिन भर खेलो मौज मनाओ,
चाहे किसी खेत में घुसकर
गन्ने चूसो भुट्टे खाओ।
भरी धूप में भी देता है
बूढ़ा बरगद ठंडी छाँव,
जिस पर बैठी करतीं चिड़ियाँ
चूँचूँ कौए करते काँव।
~ ‘दादी वाला गाँव‘ poem by ‘इंदिरा गौड़’
दादी का गांव ही प्यारा था: कृष्णावती
वो दादी का गांव ही प्यारा था,
जहां हरी भरी धरती
और खुला आसमान,
भगवान से पूजे जाते हैं
जहां मेहमान,
नदियां जहां लहरों से
करती इशारा है,
वो दादी का गांव ही प्यारा है।
दादा थे राष्ट्रपति
पापा प्रधानमंत्री बने,
दादी मुख्यमंत्री
और मां गृहमंत्री बनी,
हम बच्चे सदस्य थे उस संसद के,
वह देश रुपी घर का
छोटा संसद ही न्यारा था,
वो दादी का गांव ही प्यारा था।
मिट्टी का आंगन,
छत पर खपरैल,
छोटे-छोटे पौधे
और बड़े-बड़े पेड़,
पहाड़ों से कुछ दूर पर
वो गांव हमारा था,
वो दादी का गांव है प्यारा था,
वो दादी का गांव ही प्यारा था।
~ ‘दादी का गांव ही प्यारा था‘ poem by ‘कृष्णावती‘
दादी-दादा: व्रीती बिष्ट
एक हमारे दादा जी हैं,
एक हमारी दादी।
दोनों ही पहना करते हैं,
बिलकुल भूरी खादी।
दादी गाया करतीं,
दादा जी मुस्काते।
कभी-कभी दादा जी भी हैं,
कोई गाना गाते।
~ ‘दादी-दादा‘ poem by ‘व्रीती बिष्ट‘
(LKG Student) – St. Gregorios School, Sector 11, Dwarka, New Delhi – 110075