डर लगता है! - हताश कुमार विश्वास की निराश कविता

डर लगता है!: कुमार विश्वास

हर पल के गुंजन की स्वर–लय–ताल तुम्हीं थे,
इतना अधिक मौन धारे हो, डर लगता है!
तुम, कि नवल–गति अंतर के उल्लास–नृत्य थे,
इतना अधिक हृदय मारे हो, डर लगता है!

तुमको छू कर दसों दिशाएं सूरज को लेने जाती थीं,
और तुम्हारी प्रतिश्रुतियों पर बांसुरियाँ विहाग गाती थीं
तुम, कि हिमालय जैसे, अचल रहे जीवन भर,
अब इतने पारे–पारे हो, डर लगता है!

तुम तक आकर दृष्टि–दृष्टि की प्रश्नमयी जड़ता घटती थी,
तुम्हें पूछ कर महासृष्टि की हर बैकुंठ कृपा बँटती थी
तुम, कि विजय के एक मात्र पर्याय–पुरुष थे,
आज स्वयँ से ही हारे हो, डर लगता है!

Kumar Vishwas is a well-known contemporary Hindi poet. He is also a leader of AAP party of Delhi. Recently his following poem appeared that seems to express his disillusion with the on-goings in AAP party lead by Arvind Kejriwal.

~ कुमार विश्वास

आपको कुमार विश्वास जी की यह कविता कैसी लगी – आप से अनुरोध है की अपने विचार comments के जरिये प्रस्तुत करें। अगर आप को यह कविता अच्छी लगी है तो Share या Like अवश्य करें।

यदि आपके पास Hindi / English में कोई poem, article, story या जानकारी है जो आप हमारे साथ share करना चाहते हैं तो कृपया उसे अपनी फोटो के साथ E-mail करें। हमारी Id है: submission@sh035.global.temp.domains. पसंद आने पर हम उसे आपके नाम और फोटो के साथ यहाँ publish करेंगे। धन्यवाद!

Check Also

National Philosophy Day: Date, History, Wishes, Messages, Quotes

National Philosophy Day: Date, History, Wishes, Messages, Quotes

National Philosophy Day: This day encourages critical thinking, dialogue, and intellectual curiosity, addressing global challenges …