Calamities come in every one’s life. There could be death of a near and dear one or losing love of one’s life. Desperation may follow and everything may look dark and hopeless. Here Bachchan Ji tells in his inimitable style, it is fine to light a tiny lamp to dispel that darkness. It is OK to get up and re-connect with the flow of life again. Very moving poem indeed, especially for those who have recently suffered some grievous loss.
दीपक जलाना कब मना है
कल्पना के हाथ से कमनीय जो मंदिर बना था
भावना के हाथ ने जिसमें वितानों को तना था
स्वप्न ने अपने करों से था जिसे रुचि से सँवारा
स्वर्ग के दुष्प्राप्य रंगों से, रसों से जो सना था
ढह गया वह तो जुटाकर ईंट, पत्थर, कंकड़ों, को
एक अपनी शांति की कुटिया बनाना कब मना है
है अंधेरी रात पर दीपक जलाना कब मना है।
बादलों के अश्रु से धोया गया नभनील नीलम
का बनाया था गया मधुपात्र मनमोहक, मनोरम
प्रथम ऊषा की किरण की लालिमासी लाल मदिरा
थी उसी में चमचमाती नव घनों में चंचला सम
वह अगर टूटा मिलाकर हाथ की दोनों हथेली
एक निर्मल स्रोत से तृष्णा बुझाना कब मना है
है अंधेरी रात पर दीपक जलाना कब मना है।
क्या घड़ी थी, एक भी चिंता नहीं थी पास आई
कालिमा तो दूर, छाया भी पलक पर थी न छाई
आँख से मस्ती झपकती, बात से मस्ती टपकती
थी हँसी ऐसी जिसे सुन बादलों ने शर्म खाई
वह गई तो ले गई उल्लास के आधार, माना
पर अथिरता पर समय की मुस्कुराना कब मना है
है अंधेरी रात पर दीपक जलाना कब मना है।
हाय वे उन्माद के झोंके कि जिनमें राग जागा
वैभवों से फेर आँखें गान का वरदान माँगा
एक अंतर से ध्वनित हों दूसरे में जो निरंतर
भर दिया अंबरअवनि को मत्तता के गीत गा गा
अंत उनका हो गया तो मन बहलने के लिये ही
ले अधूरी पंक्ति कोई गुनगुनाना कब मना है
है अंधेरी रात पर दीपक जलाना कब मना है।
हाय वे साथी कि चुंबक लौहसे जो पास आए
पास क्या आये, हृदय के बीच ही गोया समाये
दिन कटे ऐसे कि कोई तार वीणा के मिलाकर
एक मीठा और प्यारा जिंदगी का गीत गाए
वे गये तो सोच कर यह लौटने वाले नहीं वे
खोज मन का मीत कोई लौ लगाना कब मना है
है अंधेरी रात पर दीपक जलाना कब मना है।
क्या हवाएं थी कि उजड़ा प्यार का वह आशियाना
कुछ न आया काम तेरे शोर करना, गुल मचाना
नाश की उन शक्तियों के साथ चलता ज़ोर किसका
किंतु ऐ निर्माण के प्रतिनिधि, तुझे होगा बताना
जो बसे हैं वे उजड़ते हैं प्रकृति के जड़ नियम से
पर किसी उजड़े हुए को फिर बसाना कब मना है
है अंधेरी रात पर दीपक जलाना कब मना है।
∼ हरिवंश राय बच्चन
हरिवंश राय बच्चन
1926 में हरिवंश राय की शादी श्यामा से हुई थी जिनका टीबी की लंबी बीमारी के बाद 1936 में निधन हो गया। इस बीच वे नितांत अकेले पड़ गए। 1941 में बच्चन ने तेजी सूरी से शादी की।
1952 में पढ़ने के लिए इंग्लैंड चले गए, जहां कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य / काव्य पर शोध किया। 1955 में कैम्ब्रिज से वापस आने के बाद आपकी भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में हिन्दी विशेषज्ञ के रूप में नियुक्त हो गई।
आप राज्यसभा के मनोनीत सदस्य भी रहे और 1976 में आपको पद्मभूषण की उपाधी मिली। इससे पहले आपको ‘दो चट्टानें’ (कविता-संग्रह) के लिए 1968 में साहित्य अकादमी का पुरस्कार भी मिला था। हरिवंश राय बच्चन का 18 जनवरी, 2003 को मुंबई में निधन हो गया था।
बच्चन व्यक्तिवादी गीत कविता या हालावादी काव्य के अग्रणी कवि हैं।
अपनी काव्य-यात्रा के आरम्भिक दौर में आप ‘उमर ख़ैय्याम’ के जीवन-दर्शन से बहुत प्रभावित रहे और उनकी प्रसिद्ध कृति, ‘मधुशाला’ उमर ख़ैय्याम की रूबाइयों से प्रेरित होकर ही लिखी गई थी। मधुशाला को मंच पर अत्यधिक प्रसिद्धि मिली और बच्चन काव्य प्रेमियों के लोकप्रिय कवि बन गए।
My Favourite Poem.