अंर्चना के फूल डूबे
ये अमलतासी अंधेरे‚
और कचनारी उजेरे,
आयु के ऋतुरंग में सब
चाह के अनुकूल डूबे।
स्पर्श के संवाद बोले‚
रक्त में तूफान घोले‚
कामना के ज्वार–जल में
देह के मस्तूल डूबे।
भावना से बुद्धि मोहित –
हो गई पज्ञा तिरोहित‚
चेतना के तरु–शिखर डूबे‚
सु–संयम मूल डूबे।
∼ चंद्रसेन विराट
आपको “चंद्रसेन विराट” जी की यह कविता “देह के मस्तूल” कैसी लगी – आप से अनुरोध है की अपने विचार comments के जरिये प्रस्तुत करें। अगर आप को यह कविता अच्छी लगी है तो Share या Like अवश्य करें।
यदि आपके पास Hindi / English में कोई poem, article, story या जानकारी है जो आप हमारे साथ share करना चाहते हैं तो कृपया उसे अपनी फोटो के साथ E-mail करें। हमारी Id है: submission@sh035.global.temp.domains. पसंद आने पर हम उसे आपके नाम और फोटो के साथ यहाँ publish करेंगे। धन्यवाद!