अंर्चना के फूल डूबे
ये अमलतासी अंधेरे‚
और कचनारी उजेरे,
आयु के ऋतुरंग में सब
चाह के अनुकूल डूबे।
स्पर्श के संवाद बोले‚
रक्त में तूफान घोले‚
कामना के ज्वार–जल में
देह के मस्तूल डूबे।
भावना से बुद्धि मोहित –
हो गई पज्ञा तिरोहित‚
चेतना के तरु–शिखर डूबे‚
सु–संयम मूल डूबे।
∼ चंद्रसेन विराट
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