देखो, टूट रहा है तारा: हरिवंश राय बच्चन

देखो, टूट रहा है तारा: हरिवंश राय बच्चन

देखो, टूट रहा है तारा।

नभ के सीमाहीन पटल पर
एक चमकती रेखा चलकर
लुप्त शून्य में होती-बुझता एक निशा का दीप दुलारा।
देखो, टूट रहा है तारा।

हुआ न उडुगन में क्रंदन भी,
गिरे न आँसू के दो कण भी
किसके उर में आह उठेगी होगा जब लघु अंत हमारा।
देखो, टूट रहा है तारा।

यह परवशता या निर्ममता
निर्बलता या बल की क्षमता
मिटता एक, देखता रहता दूर खड़ा तारक-दल सारा।
देखो, टूट रहा है तारा।

हरिवंश राय बच्चन

आपको “हरिवंश राय बच्चन” जी की यह कविता “देखो, टूट रहा है तारा” कैसी लगी – आप से अनुरोध है की अपने विचार comments के जरिये प्रस्तुत करें। अगर आप को यह कविता अच्छी लगी है तो Share या Like अवश्य करें।

यदि आपके पास Hindi / English में कोई poem, article, story या जानकारी है जो आप हमारे साथ share करना चाहते हैं तो कृपया उसे अपनी फोटो के साथ E-mail करें। हमारी Id है: submission@sh035.global.temp.domains. पसंद आने पर हम उसे आपके नाम और फोटो के साथ यहाँ publish करेंगे। धन्यवाद!

Check Also

मासिक राशिफल मार्च 2024: ज्योतिषी चिराग बेजान दारूवाला

मासिक राशिफल नवंबर 2024: ज्योतिषी चिराग बेजान दारूवाला

मासिक राशिफल नवंबर 2024: वृषभ, कर्क, सिंह समेत 4 राशियों के लिए नवंबर का महीना …