Shail Chaturvedi Hasya Kavita देवानंद और प्रेमनाथ

Shail Chaturvedi Hasya Kavita देवानंद और प्रेमनाथ

एक बार हम रिक्शे में बैठ गए
ठिकाने पर पहुँच कर
पचास पैसे थमाए
तो रिक्शा चालक ऐंठ गए
“पचास पैसे थमाते शर्म नहीं आई
लीजिए आप ही सँभालिए
और जल्दी से रुपया निकालिए,
वो तो मैंने
अँधेरे में हाँ कह दी थी
उजाले में होता
तो ठेले की सवारी
रिक्शे में नहीं ढोता”

हमारे शारीरिक विकास
और गंजेपन को देखकर
लोग हमारा मज़ाक उड़ाते हैं
मगर यह भूल जाते हैं
कि जवानी में हम भी
खूबसूरती के कामल थे
हमारे सर पर भी
लहराते हुए चमकीले बाल थे
कॉलेज की लड़कियाँ कॉपी पर
हमारा चित्र बनाती थीं
और दो चार ऐसी थीं
जो हमे देवानंद कह कर बुलाती थीं
मगर भला हो इस गृहस्थी के चक्कर का
जिसने हमे बरबाद कर दिया
देवानंद से प्रेमनाथ कर दिया!

शैल चतुर्वेदी

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