धुंधली नदी में: धर्मवीर भारती

धुंधली नदी में: धर्मवीर भारती

आज मैं भी नहीं अकेला हूं
शाम है‚ दर्द है‚ उदासी है।

एक खामोश सांझ–तारा है
दूर छूटा हुआ किनारा है
इन सबों से बड़ा सहारा है।

एक धुंधली अथाह नदिया है
और भटकी हुई दिशा सी है।

नाव को मुक्त छोड़ देने में
और पतवार तोड़ देने में
एक अज्ञात मोड़ लेने में
क्या अजब–सी‚ निराशा–सी‚
सुख–प्रद‚ एक आधारहीनता–सी है।

प्यार की बात ही नहीं साथी
हर लहर साथ–साथ ले आती
प्यास ऐसी कि बुझ नहीं पाती
और यह जिंदगी किसी सुंदर
चित्र में रंगलिखी सुरा–सी है।

आज मैं भी नहीं अकेला हूं
शाम है‚ दर्द है‚ उदासी है।

धर्मवीर भारती

आपको धर्मवीर भारती जी की यह कविता “धुंधली नदी में” कैसी लगी – आप से अनुरोध है की अपने विचार comments के जरिये प्रस्तुत करें। अगर आप को यह कविता अच्छी लगी है तो Share या Like अवश्य करें।

यदि आपके पास Hindi / English में कोई poem, article, story या जानकारी है जो आप हमारे साथ share करना चाहते हैं तो कृपया उसे अपनी फोटो के साथ E-mail करें। हमारी Id है: submission@sh035.global.temp.domains. पसंद आने पर हम उसे आपके नाम और फोटो के साथ यहाँ publish करेंगे। धन्यवाद!

Check Also

Blue Christmas Day: Date, History, Significance, Observance, Facts

Blue Christmas Day: Date, History, Significance, Observance, Facts

Blue Christmas: Blue Christmas in the Western Christian tradition, is a day in the Advent …