एक दिन जब था मुँडेरे पर खड़ा
आ अचानक दूर से उड़ता हुआ
एक तिनका आँख में मेरी पड़ा।
मैं झिझक उठा हुआ बैचैन सा
लाल होकर आँख भी दुखने लगी
मूठ देने लोग कपड़े की लगे
ऐंठ बेचारी दबे पाँवों भगी।
जब किसी ढब से निकल तिनका गया
तब ‘समझ’ ने यों मुझे ताने दिये
ऐंठता तू किस लिये इतना रहा
एक तिनका है बहुत तेरे लिये।