Here is a famous poem that was written by the well known poet Girija Kumar Mathur at the time when India got independence. The poem is still relevant today.
पंद्रह अगस्त: 1947 – गिरिजा कुमार माथुर
पहरुए सावधान रहना!
खुले देश के द्वार
अचल दीपक समान रहना!
प्रथम चरण है नए स्वर्ग का
है मंज़िल का छोर
इस जन-मन्थन से उठ आई
पहली रत्न हिलोर
अभी शेष है पूरी होना
जीवन मुक्ता डोर
क्योंकि नहीं मिट पाई दुख की
विगत साँवली कोर
ले युग की पतवार
बने अम्बुधि महान रहना
पहरुए, सावधान रहना!
विषम शृँखलाएँ टूटी हैं
खुली समस्त दिशाएँ
आज प्रभंजन बन कर चलतीं
युग बन्दिनी हवाएँ
प्रश्नचिह्न बन खड़ी हो गईं
यह सिमटी सीमाएँ
आज पुराने सिंहासन की
टूट रही प्रतिमाएँ
उठता है तूफ़ान इन्दु तुम
दीप्तिमान रहना
पहरुए, सावधान रहना!
ऊँची हुई मशाल हमारी
आगे कठिन डगर है
शत्रु हट गया, लेकिन
उसकी छायाओं का डर है
शोषण से मृत है समाज
कमज़ोर हमारा घर है
किन्तु आ रही नई ज़िन्दगी
यह विश्वास अमर है
जन-गंगा में ज्वार
लहर तुम प्रवहमान रहना
पहरुए, सावधान रहना!
∼ गिरिजा कुमार माथुर
प्रारंभिक शिक्षा झाँसी, उत्तर प्रदेश में हुई और आपने लखनऊ विश्विद्यालय से एम.ए. अंग्रेज़ी व एल.एल.बी. की। कुछ समय तक वकालत की, तत्पश्चात् दिल्ली में आकाशवाणी में काम किया। फिर दुरदर्शन में भी काम किया और वहीं से सेवानिवृत हुए।
10 जनवरी 1994 को नई दिल्ली मे आपका निधन हो गया।
गिरिजाकुमार माथुर की समग्र काव्य यात्रा से परिचित होने के लिए उनकी पुस्तक “मुझे और अभी कहना है” अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
गिरिजा कुमार माथुर माथुर की प्रमुख रचनाएँ हैं – नाश और निर्माण, धूप के धान, शिलापंख चमकीले, भीतरी नदी की यात्रा, काव्य-संग्रह जन्म कैद (नाटक) नई कविता: सीमाएँ और संभावनाएँ (आलोचना)।
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