कि चाबी में है ताला।
कमरे के अंदर घर है,
और गाय में है गौशाला॥
दांतों के अंदर मुहं है,
और सब्जी में है थाली।
रुई के अंदर तकिया,
और चाय के अंदर प्याली॥
टोपी के ऊपर सर है,
और कार के ऊपर रस्ता।
ऐनक पर लगी हैं आँखें,
कापी किताब में बस्ता॥
सर के बल सभी खड़े हैं,
पैरों से सूंघ रहे हैं।
घुटनों में भूख लगी है,
और टखने ऊंघ रहे हैं॥
मकड़ी में भागे जाला,
कीचड में बहता नाला।
कुछ भी न समझ में आये,
यह कैसा है घोटाला॥
इस घोटाले को टालें,
चाबी ताले में डालें।
कमरे को घर में लायें,
गौशाले में गाय को पालें॥
मुहं में दांत लगायें,
सब्जी सा भर लें थाली।
रुई तकिये में ठूंसे,
चाय से भर लें प्याली॥
टोपी को सर पर पहनें,
रस्ते पर कार चलायें।
आँखों पे लगायें ऐनक,
बस्ते में किताबें लायें॥
पैरों पे खड़े हो जाएँ,
और नाक से खुशबु सूंघें।
भर पेट उड़ाएं खाना,
और आँख मुंड के ऊँघें॥
जले में मकड़ी भागे,
कीचड नालों में बहता।
अब सब समझ में आये,
कुछ घोटाला ना रहता॥