गणपति अपने गाँव चले: The cult movie of 1990, Agneepath, starring the legendary actor Amitabh Bachchan is still etched in the minds of his fans. Agneepath Amitabh Bachchan movie showcases the rise of Vijay Dinanath Chauhan played by Amitabh Bachchan in the world of crime in Bombay. Vijay, is the son of Master Dinanath Chauhan (Alok Nath) who is a school teacher residing in the coastal village of Mandwa. Master Dinanath wishes to transform the village by educating the people, eliminating alcoholism and bringing electricity. But a mobster, Kaancha Cheena (Danny Denzongpa) has plans to turn the village into a drug hub owing to its proximity to Bombay and its remote location. He devises a heinous plot to frame Master Dinanath who is stoned to death by the villagers while a young Vijay watches this. Agneepath is one of the finest Amitabh Bachhan movies that has left a lasting impression on the audience’s mind.
Agneepath Amitabh Bachchan film opens with an introductory poem written by the great Harivansh Rai Bachchan that forms the whole crux of the movie, which is still fresh in everybody’s hearts. Vijay moves to Bombay along with his mother and his sister Shiksha. He undergoes a complete transformation from the playful boy in the village to a fearless young lad who is quickly absorbed into the Bombay underworld and becomes a force to reckon with. He does not live with his mother who still abides by the strong ideals that her husband fostered. Fate brings him against Kaancha Cheena. Catch the Agneepath Amitabh Bachchan full movie to know what happens in the ugly face off. Mithun Chakraborty’s award winning performance as Krishnan Iyer M.A. in the movie simply cannot be missed.
गणपति अपने गाँव चले: अग्निपथ
गणपति बप्पा मोरया, पुड्च्या वर्षी लौकरया
मोरया रे, बप्पा मोरया रे – ४
गणपति अपने गाँव चले, कैसे हमको चैन पड़े
जिसने जो माँगा उसने वो पाया,
रस्ते पे हैं सब लोग खड़े
गणपति बप्पा दुख हरता, दुख हरता भाई दुख हरता
दस दिन घर में आन रहे, भक्तों के मेहमान रहे
सारे शहर में धूम मची, जोश से जनता झूम उठी
उनको प्यारे सब इंसान राजा रंक हैं एक समान
दुख हरता भाई दुख हरता
किसी को कुछ वरदान दिया, किसी को कोई ज्ञान दिया
हैं चले सभी को ख़ुश करके, खाली खाली झोलियों को भरके
आयेंगे साल के बाद इधर, लोग करेंगे याद मगर
थोड़े ही दिन रहे, थोड़े दिनों में करके चले ये काम बड़े
सारे घर उनको घर हैं, उनको एक बराबर हैं
ऊँचे महल अमीरों के हों या हम गरीबन के झोपड़े
मस्त पवन ये फिर ले आई, मौजों की नैया लाई
गणपति उस पार चले, लेकर सबका प्यार चले
सफल हुई सबकी पूजा, ऐसा न कोई बिन दूजा
घटा गगन पर लहराई, घड़ी विसर्जन की आई
भूल चूक हो माफ़ हमारी, हम सब हैं बड़े नादान बड़े
∼ आनंद बक्षी
चित्रपट : अग्निपथ (१९९०)
गीतकार : आनंद बक्षी
संगीतकार : लक्ष्मीकांत प्यारेलाल
गायक : सुदेश भोसले, कविता कृष्णामूर्ति, अनुपमा देशपांडे
सितारे : अमिताभ बच्चन, मिथुन चक्रवर्ती, माधवी, नीलम कोठारी, डैनी डेंज़ोंग्पा, रोहिणी हट्टंगड़ी, अलोक नाथ
आनंद बक्षी: सदाबहार गीतकार
40 साल से भी ज्यादा लंबा फिल्मी सफर, चार हजार से भी ज्यादा गीत और 40 बार फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए नामांकन। ये आंकड़े खुद ही बता देते हैं कि आनंद बख्शी ने जो रचा उसका दायरा कितना विशाल था। शमशाद बेगम हों या अलका याग्निक या मन्ना डे या फिर कुमार सानू। गायक आते-जाते रहे, उनके लिए शब्द रचने वाला यह गीतकार वहीं रहा।
21 जुलाई 1930 को रावलपिंडी में जन्मे आनंद बख्शी गीतकार के साथ-साथ गायक भी बनना चाहते थे। अपने इसी सपने को पूरा करने के लिए वे 14 साल की उम्र में घर से भागकर बंबई (Mumbai) आ गए। शुरुआत में मौका नहीं मिला तो जिंदगी चलाने के लिए उन्होंने कई साल तक पहले नौसेना और फिर सेना में काम किया। इस दौरान भी फिल्मी दुनिया में जाने की धुन उनके सिर से उतरी नहीं।