गाँव के कुत्ते – सूंड फैजाबादी

हे मेरे गाँव के परमप्रिय कुत्ते
मुझे देख–देख कर चौंकते रहो
और जब तक दिखाई पडूं
भौंकते रहो, भौंकते रहो, मेरे दोस्त
भौंकते रहो।

इसलिए की मैं हाथी हूं
गाँव भर का साथी हूं
बच्चे, बूढ़े, जवान, सभी छिड़कते हैं जान
मगर तुम खड़ा कर रहे हो विरोध का झंडा
बेकार का वितंडा।

अपना तो ऐसे–वैसों से कोई वास्ता नहीं है
‘परिश्रम के अलावा कोई रास्ता नहीं है’
इसलिए मैं हूँ पूजनीय–वंदनीय
मेरा सम्मान है मर्यादा है
क्योंकि मेरी ‘दूरदृष्टि है पक्का इरादा है’
और तुम ढूंढ रहे हो कौरा।
कौरे के लिए दौरा।
हाये रे मुफ्तखोरी पहरे के नाम पर चोरी
बिलकुल वाहियात हो, रीते हो
आदमियों से भी गये–बीते हो।

कई बार तुम्हें सजाएं मिलीं तुम्हें कड़ी–कड़ी
मगर कुत्ते की पूंछ मुड़ी की मुड़ी
सुना है तुम्हारी जबान में अमृत बसता है
फिर जहर क्यों बो रहे हो ?
मैं तो हंस रहा हूं, तुम रो रहे हो।

भौंक–भौंक कर क्या कर पाओगे
कुत्ते की मौत मर जाओगे
अपने गाँव के प्रति वफादार बनो
अपनों से प्यार करो
तुम्हारी तरह कितने लोग
बेकार के चक्कर में चौंकते रहते हैं
हाथी चला जाता है
कुत्ते भौंकते रहते हैं।

∼ सूंड फैजाबादी

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