सब की चिंता बढ़ाई,
गर्म हवायें आग बरसायें
लोग पसीने में नहायें।
उल्टी-दस्त चक्कर आये
घबराहट से जान जाये,
मच्छर काटे डॉक्टर के पास जायें
डेंगू, मलेरिया का डर सताये।
पानी पी-पी के पेट भरू
खाना खाने में संकोच करुं,
कितना नहाऊं कितना पानी बहाऊं
फिर भी तुझ से छुटकारा न पाऊं।
शर्बत ठंडा राहत दिलाये
गर्मी को दूर भगाये,
खेत-खलियान सुख गये
किसान पानी को तरस गये।
सुख गई धरती, मुरझा गये पौधे
पशु-पक्षी प्यासे तड़पे
इंसान पानी को तरसे।
सूर्य देव रहम करो
वरुण देव वर्षा करो,
बरस जा बादल गरज जा बादल
सूखी हुई नदियों को भर जा बादल।
~ श्रीचंद रैकवार
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