घर की बात – प्रेम तिवारी

जाग–जागे सपने भागे
आँचल पर बरसात
मैं होती हूँ, तुम होते हो
सारी सारी रात।

नीम–हकीम मर गया कब का
घर आँगन बीमार
बाबू जी तो दस पैसा भी
समझे हैं दीनार
ऊब गयी हूँ
कह दूंगी मैं ऐसी–वैसी बात।

दादी ठहरीं भीत पुरानी
दिन दो दिन मेहमान
गुल्ली–डंडा खेल रहे हैं
बच्चे हैं नादान
टूटी छाजन झेल न पाएगी
अगली बरसात

हल्दी के सपने आते हैं
ननदी को दिन–रैन
हमे पता है सोलह में
मन होता है बेचैन
कोई अच्छा सा घर देखो
ले आओ बारात।

∼ प्रेम तिवारी

About 4to40.com

Check Also

Veer Savarkar Biography

Veer Savarkar Biography For Students and Children

Veer Savarkar Biography: Vinayak Damodar Savarkar, also commonly known as Veer Savarkar, was an Indian …