हाथ बटाओ Thoughtful Hindi Poem from Nida Fazli

हाथ बटाओ Thoughtful Hindi Poem from Nida Fazli

नील गगन पर बैठे कब तक
चांद सितारों से झांकोगे

पर्वत की ऊंची चोटी से कब तक
दुनियां को देखोगे

आदर्शों के बन्द ग्रंथों में कब तक
आराम करोगे

मेरा छप्पर टपक रहा है
बन कर सूरज इसे सुखाओ

खाली है आटे का कनस्तर
बन कर गेहूं इसमें आओ

मां का चश्मा टूट गया है
बन कर शीशा इसे बनाओ

चुप चुप हैं आंगन में बच्चे
बनकर गेंद इन्हें बहलाओ

शाम हुई है चांद उगाओ
पेड़ हिलाओ हवा चलाओ

काम बहुत है हाथ बटाओ अल्ला मीयां
मेरे घर भी आ ही जाओ अल्ला मीयां

~ निदा फाजली

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