चलो कहीं से क्रय कर लायें।
सौ रुपये कितने में मिलते,
मंडी चलकर पता लगायें।
यह तो पता करो पापाजी,
पाँच रुपये कितने में आते|
एक रुपये की कीमत क्या है,
क्यों इसका न पता लगाते।
नोट पाँच सौ का लेना हो,
तो हमको क्या करना होगा।
दस का नोट खरीदेंगे तो,
धन कितना व्यय करना होगा।
पापा बोले बाज़ारों में,
रुपये नहीं बिका करते हैं।
रुपये के बल पर दुनिया के,
सब बाज़ार चला करते हैं।
श्रम शक्ति के व्यय करने पर,
रुपये हमको मिल जाते हैं।
कड़े परिश्रम के वृक्षों पर,
रुपये फूलकर फल जाते हैं।
~ प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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A very good collection of poems
prabhudayal