Jaishankar Prasad Inspirational Desh Bhakti Poem हिमाद्रि तुंग शृंग से

हिमाद्रि तुंग शृंग से: जय शंकर प्रसाद की देशप्रेम कविता

Here is an old classic inspirational poem by Jay Shankar Prasad.

हिमाद्रि तुंग शृंग से: जय शंकर प्रसाद

हिमाद्रि तुंग शृंग से
प्रबुद्ध शुद्ध भारती –
स्वयं प्रभा समुज्ज्वला
स्वतंत्रता पुकारती –

‘अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़- प्रतिज्ञ सोच लो,
प्रशस्त पुण्य पंथ है, बढ़े चलो, बढ़े चलो!’

असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ
विकीर्ण दिव्यदाह-सी,
सपूत मातृभूमि के –
रुको न शूर साहसी!

अराति सैन्य–सिंधु में, सुवाड़वाग्नि से जलो,
प्रवीर हो, जयी बनो – बढ़े चलो, बढ़े चलो!

जयशंकर प्रसाद

जयशंकर प्रसाद (30 जनवरी 1890 काशी [सरायगोवर्धन in Uttar Pradesh] – 15 नवम्बर 1937), हिन्दी कवि, नाटककार, कहानीकार, उपन्यासकार तथा निबन्धकार थे। वे हिन्दी के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। उन्होंने हिंदी काव्य में एक तरह से छायावाद की स्थापना की जिसके द्वारा खड़ी बोली के काव्य में न केवल कमनीय माधुर्य की रससिद्ध धारा प्रवाहित हुई, बल्कि जीवन के सूक्ष्म एवं व्यापक आयामों के चित्रण की शक्ति भी संचित हुई और कामायनी तक पहुँचकर वह काव्य प्रेरक शक्तिकाव्य के रूप में भी प्रतिष्ठित हो गया। बाद के प्रगतिशील एवं नयी कविता दोनों धाराओं के प्रमुख आलोचकों ने उसकी इस शक्तिमत्ता को स्वीकृति दी। इसका एक अतिरिक्त प्रभाव यह भी हुआ कि खड़ीबोली हिन्दी काव्य की निर्विवाद सिद्ध भाषा बन गयी।

Check Also

नारी: सुमित्रानंदन पंत की लोकप्रिय हिंदी कविता

नारी: सुमित्रानंदन पंत की लोकप्रिय हिंदी कविता

We human beings are one of the animal species. Yet with our newfound ability to …