कहीं छोटी और कहीं कृपाण के लिए।
दंगो से तो देखा मेरा देश जल रहा-
भैया कुछ तो सोचो हिन्दुस्तान के लिए॥
चिराग घर के के ही जल रह यहाँ,
मदारी अपनी ढपलियां बजा रहे यहाँ।
द्वेष वाली भावना के विष को घोलके-
देश कि अखंडता वो खा रहे यहाँ॥
भाषा-भाषी झगडे जुबान के लिए,
कहीं धर्म, या तीर्थ स्थान के लिए।
दंगो से तो देखो मेरा देश जल रहा॥
भैया कुछ तो सोचो हिन्दुस्तान के लिए॥
अवध के द्वारे पे उछाला पड़ा है,
मथुरा की भूमि पे भी पाला पड़ा है।
काश्मीर में भी कैसी आग जल रही-
कन्या कुमारी का मुह काला पड़ा है॥
दंगे क्यों है प्रार्थना अजान के लिए,
बुत बने हम सब दुकान के लिए।
दंगो से तो देखो मेरा देश जल रहा॥
हल्दी घाटी से रना की आह रोयी है,
झाँसी वाली रानी की भी छह रोयी है।
शिवजी मराठा भी है रो रहे खड़े-
भगत वाली फांसी की कराह रोयी है॥
बटवारें की उठ रहे तूफ़ान के लिए,
अपनी तो अलग पहचान के लिए।
दंगो से तो देखो मेरा देश जल रहा॥
भैया कुछ तो सोचो हिन्दुस्तान के लिए॥
बहादुर मेरे देश के वो लाल कहाँ हैं,
आजादी की जलती मशाल कहाँ हैं?
कहाँ हैं जवनिया जो देश पर मिटे?
भैरो-रूद्र और महाकाल कहाँ हैं॥
आओ ‘रत्नम’ फिर से बलिदान के लिए,
ध्वजा, देश, देश के विधान के लिए।
दंगो से देखो मेरा देश जल रहा॥
भैया कुछ तो सोचो हिन्दुस्तान के लिए॥