थक गए पांव
अब सोने दो।
फिर नन्हीं नन्हीं बूंदें
फिर नई फसल
फिर वर्षा ऋतु
फिर ग्रीष्म वही
फिर नई शरद।
सोते से जगाया क्यों मुझको
क्यों स्वप्न दिखाए मुझको
मुझे फिर से स्वप्न दिखाओ
मुझे वो सी नींद सुलाओ।
जो बन पाया सो रखा है
जो जुट पाया सो रखा है
जब जी चाहे तब ले जाना
कुछ चित्र बनाए थे मैंने
वे सभी सिराहने रखे हैं
मैं सो जाऊं तो ले जाना।
पतझड़ के सूखे पत्ते
मुझसे नित कहते दिखते
ये बड़े पुराने दिखते
बदलो इनको
कोई नूतन भेस बनाओ
मैं फिर आऊंगा
घबराना मत
आगे से हट जाओ।
सखि बड़ा घोर अंधियारा है
एक काम करो
कुछ काम करो
तनि काम करो
एक दिया बार कै लै आओ
मैं मन भर के आनन देखूं
मत कहना कह कर नहीं गए
मैं सो जाऊं तो दिया सिराहने रख देना।
हो चुका खेल
थक गए पांव।