होली आई रे
बसंत में हर कली मुस्कुराई,
फागुन की मस्ती चंहुओर है छाई,
मदभरा रंगीं नजारा हर कहीं नजर आता है,
सुनहरा रंग फिजाओं में पसर जाता है,
चंग की ढाप चौक-चौराहों में गूंज रही है,
फागणियों को फाग गाने की सूझ रही है,
लोग-लुगाई होली की मस्ती में सराबोर हैं,
हर तरफ होली आई रे होली आई रे का शोर है।
पिचकारी
ऐसी मारत रंग भरी पिचकारी,
जिसकी मार लगे है प्यारी,
ऐसी छूटत रंग भरी पिचकारी,
देत मजा, मस्ती अति भारी,
जब मारत सजनिया पे पिचकारी,
चढ़ जात है,
भंग की सी खुमारी।
गुलाल
थोड़ा हरा रंग उड़ाएंगे,
थोड़ा डालेंगे रंग लाल,
बाजार में अबके आया है,
प्यार भरा गुलाल,
मुट्ठीभर पीला फेकेंगे,
ले आएंगे गुलाबी रंग भी उधार,
बाजार में अबके आया है,
प्यार भरा गुलाल,
आंगन रंग-बिरंगा कर देंगे,
बैंगनिया रंग से चौखट भर देंगे,
दरोदीवार नीले से करेंगे सराबोर,
केसरिया छिटकाएंगे चंहुओर,
गली कर देंगे गहरे लाल से निहाल,
बरसते मनभावन रंगों से फिजा को ना होगा मलाल,
बाजार में अबके आया है,
प्यार भरा गुलाल।
शेर की गुफा में होली
शेर की गुफा द्वार सामने
पिचकारी-गुलाल की होली,
नाच रहे थे भालू-बंदर
जेब्रा पहना साड़ी-चोली।
कोयल-मैना फाग गा रही
नगाड़ा बजायें कंगारू,
गधा नशे में मटक रहा था
पी रक्खी थी कसकर दारू।
होली मिलने गया शेर से
लगकर दोनों गले खड़े थे,
धुत्त नशे में गिरे गधा जी
गुफा किनारे गिरे पड़े थे।
गधा नशे में बोला यारों
मुझ पर जितना रंग लगा लो,
लेकिन मेरे मुंह के भीतर
पिचकारी से रंग न डालो।
It is a kids portal then why the poems for adults included?
Hello Mr. Shrivastava,
It’s kids portal for parents. Please inform us if you find any content or picture vulgar.
Thanks!
Admin