मन की मस्ती तन में गश्ती, लगा रहा है रंगोली।
इन्द्रधनुष सी रंगी जा रही, गोरी की अंगिया चोली।
मौसम युवा जवानी ॠतु की, बांट रहा है भर झोली।
बिना वजह अंगडाई तन में, नहीं लगाती है बोली।
फूलों के मुख रक्तिम-रक्तिम, गात में फैली है होली।
सबके अधरों पर गुम्फित है, फाग सुहाना मधुर अति।
रंग, रंगोली के रथ चढक़र, होली लाये प्रीत-गति।
सुन्दर स्मृति संबन्धों के, लेकर आये यह होली।
सुन्दर, हार्दिक संदेशों को, देकर जाये यह होली।
पर्वों में अति पावन होली, पावन तर्क लिये आये।
जीवन के सूखे कुंडों में, जीवन यह भरता जाये।
सिध्दि कर्मों में भर जाये, मंत्रों के आवाहन का।
सारे स्याह मिटा जाये यह, जीव,जगत का जीवन का।
स्वर्णसिध्द हमको कर जाये, हमको दे जाये उल्लास।
होली के अणु, परमाणु में, जीवन ही होवे अहसास।
∼ अरुण प्रसाद
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