हौसले तेरे हैं बुलंद - आर पी मिश्रा ‘परिमल’

हौसले तेरे हैं बुलंद – आर पी मिश्रा ‘परिमल’

कैसे ये मासूम पाखी तूफान से टकराएंगे
आंधियों में किस तरह लौट कर घर आएंगे

इन की हिम्मत में है जोखिम से खेलना
जोखिमों से खेलते एक दिन मर जाएंगे

गमलों में ये बदबू सी क्यों आने लगी
बदल दो पानी वरना पेड़ सब मर जाएंगे

दूध सांपों को क्या पिलाएं इस साल
बांबियों में नहीं, संसद की गली मुड़ जाएंगे

अब परिंदे भी सयाने हो गए सैयाद सुन
ये मिल कर कफस तेरा उड़ा ले जाएंगे

मुंतजिर हूं चांदतारों को जरा झपकी लगे
तुझे दुनिया की नजरों से चुरा ले जाएंगे

हम को मत छेड़ो नींव के पत्थर हैं हम
जो हमें उकसाया, सारे महल गिर जाएंगे

नहीं मांगेंगे किसी से अपने हिस्से की खुशी
हक के वास्ते हर कुर्सी से लड़ जाएंगे

परों की फिक्र मत कर, रख नजर में मंजिलें
हौसले तेरे तुझे आसमान पर ले जाएंगे.

~ आर पी मिश्रा ‘परिमल’

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