तुम साथ रहीं, हँसते–हँसते, इतना लंबा पथ नाप गया।
तुम उतरीं चुपके से मेरे यौवन वन में बन के बहार
गुनगुना उठे भौंरे, गुंजित हो कोयल का आलाप गया।
स्वपनिल–स्वपनिल सा लगा गगन, रंगों में भीगी सी धरती
जब बही तुम्हारी हँसी हवा–सी, पत्ता पत्ता काँप गया।
जाने कितने दिन हम यों ही, बहके मौसम के साथ रहे
जाने कितने ही ख्वाब हमारी आँखों में वह छापा गया।
धीरे–धीरे घर के कामों ने हाथ तुम्हारे थाम लिये
मेरा भी मन अब नये समय का नया इशारा भाँप गया।
अरतन–बरतन, चूल्हा–चक्की, रोटी–पानी के राग उठे
झड़ गये बहकते रंग, हृदय में भावों का भर ताप गया।
मैंने न किया, तुमने न किया, अब प्यार भरा संवाद कभी
बोलता हुआ वह प्यार, न जाने कब बन क्रिया–कलाप गया।
झगड़े भी हुए, अनबोले भी, पर सदा दर्द की चादर से
चुपके से कोई एक दूसरे का नंगापन ढाँक गया।
इस विषय सफर की आँधी में, हम चले हाथ में हाथ दिये
चलते–चलते हम थके नहीं, आखिर रस्ता ही हार गया।