इक पल – राजीव कृष्ण सक्सेना

इक पल है नैनों से नैनों के मिलने का,
बाकी का समय सभी रूठने मनाने का।

इक पल में झटके से हृदय टूक-टूक हुआ,
बाकी का समय नीर नैन से बहाने का।

इक पल की गरिमा ने बुध्द किया गौतम को,
बाकी का समय तपी ज़िंदगी बिताने का।

पासों से पस्त हुए इक पल में धर्मराज,
बाकी का समय कुरुक्षेत्र को सजाने का।

इक पल में सीता का हरण किया रावण ने,
बाकी का समय राम कथा को सुनाने का।

चमक गई दमक गई इक पल नभ पर तड़िता,
बाकी का समय सभी गरज बरस जाने का।

इक पल की महिमा है इक पल का जादू है,
इक पल का निश्चय ही जीवन पर काबू है।

इक पल जल कर करता जीवन पथ आलोकित,
बाकी का समय लक्ष्य छोड़ भटक जाने का।

∼ राजीव कृष्ण सक्सेना

About Rajiv Krishna Saxena

प्रो. राजीव कृष्ण सक्सेना - जन्म 24 जनवरी 1951 को दिल्ली मे। शिक्षा - दिल्ली विश्वविद्यालय एवं अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली में। एक वैज्ञानिक होने पर भी प्रोफ़ेसर सक्सेना को हिंदी सहित्य से विशेष प्रेम है। उन्होंने श्रीमद भगवतगीता का हिंदी में मात्राबद्ध पद्यानुवाद किया जो ''गीता काव्य माधुरी'' के नाम से पुस्तक महल दिल्ली के द्वारा प्रकाशित हुआ है। प्रोफ़ेसर सक्सेना की कुछ अन्य कविताएँ विभिन्न पत्रिकाओं मे छप चुकी हैं। उनकी कविताएँ लेख एवम गीता काव्य माधुरी के अंश उनके website www.geeta-kavita.com पर पढ़े जा सकते हैं।

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