योग का महत्व: योग – अभ्यास का एक प्राचीन रूप जो भारतीय समाज में हजारों साल पहले विकसित हुआ था और उसके बाद से लगातार इसका अभ्यास किया जा रहा है। इसमें किसी व्यक्ति को सेहतमंद रहने के लिए और विभिन्न प्रकार के रोगों और अक्षमताओं से छुटकारा पाने के लिए विभिन्न प्रकार के व्यायाम शामिल हैं। यह ध्यान लगाने के लिए एक मजबूत विधि के रूप में भी माना जाता है जो मन और शरीर को आराम देने में मदद करता है। दुनियाभर में योग का अभ्यास किया जा रहा है। विश्व के लगभग 2 अरब लोग एक सर्वेक्षण के मुताबिक योग का अभ्यास करते हैं।
योग का महत्व
शरीर और मन का संतुलन,
योग समझ तू मेरे मन।
रोग न फटके उसके पास,
योग का जो करे अभ्यास।
प्रथम योगी शिव कहलाए,
वेद गीता पुराण बतलाए।
कालक्रम में पतंजलि आते,
योग महत्व हमें समझाते।
प्राचीन परम्परा है योग,
रख जाए यह हमें निरोग।
सार तत्व तुम इसका जानो,
रे! गुण इसके तुम पहचानो।
समग्र जीवन का विज्ञान,
पढ़ाए हमें नित योग महान।
योगी जीवन जो है जीता,
मानो वह तो अमृत पीता।
संस्कृति का यह मूल स्तम्भ
भरे न कभी ओछा दम्भ।
योग चित्त को निर्मल करता,
प्रखर बुद्धि यह है भरता।
~ ‘योग का महत्व‘ poem by ‘रामप्रसाद शर्मा ‘प्रसाद’‘
योग शब्द संस्कृत की योजनाओं से बना है, जिसका अर्थ समाधि और मिलाना है। महर्षि व्यास ने योग को समाधि का वाचक माना है। जिसमें मन को भलीभांति समाहित किया जाए । शास्त्रों के अनुसार, समाधि और आत्मा का परमात्मा से मिलन को योग कहते हैं। योग दर्शन के अनुसार चित वृत्तियों का निरोध करना ही योग है। वशिष्ठ संहिता ने मन को शांत करने के उपाय को योग कहा है। कठोपनिषद में योग का लक्षण हैं- जब पांचों इंद्रियां मनसहित निश्चल हो जाती है और बुद्धि का गतिरोध भी रुक जाता है, इस स्थिति को योग कहते हैं। निश्चय से ज्ञान की उत्पत्ति और कर्म का क्षय ही योग हैं। महर्षि चरक ने मन का इंद्रियों एवं विषयों से पृथक हो, आत्मा में स्थिर ही योग बताया है। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है- ‘योग : कर्मसु कौशलम्‘ अर्थात् योग से कर्मों में कुश्लाता आती है। व्यावाहरिक स्तर पर योग शरीर, मन और भावनाओं में संतुलन और सामंजस्य स्थापित करने का एक साधन है। अमरकोश में योग, ध्यान और संगति का वाचक माना जाता है।