Here is an excerpt from a poem expressing the wishes of a poor poet for his love on her birthday.
फूल एक और खिल गया है किसी माली का
आज की रात तेरी उम्र के कच्चे घर में
दीप एक और जलेगा किसी दिवाली का।
आज वह दिन है किसी चौक पुरे आँगन में
बोलने वाला खिलौना कोई जब आया था
आज वह वक्त है जब चाँद किसी पूनम का
एक शैतान शमादान से शरमाया था।
मेरी मुमताज अगर शाहजहाँ होता मैं
आज एक ताजमहल तेरे लिये बनवाता
सब सितारों को कलाई में तेरी जड़ देता
सब बहारों को तेरी गोद में बिखरा आता।
किंतु मैं शाहजहाँ हूँ न सेठ साहूकार
एक शायर हूँ गरीबी ने जिसे पाला है
जिसकी खुशियों से न बन पाई कभी जीवन में
और जिसकी सुबह का भी गगन काला है।
आज क्या दूँ मैं तुझे कुछ भी नहीं दे सकता
गीत हैं कुछ कि जो अब तक न कभी रूठे हैं
भेंट में तेरी इन्हें ही मैं भेजता हूँ तुझे
हीरे मोती तो दिखावे हैं कि सब झूठे हैं।
प्यार से स्नेह से होंठों पे बिठाना इनको
और जब रात घिरे याद इन्हें कर लेना
राह पर और भी काली जो कहीं हो कोई
हाथ जो इनके दिया है वह उसे दे देना।