काली माता: स्वामी विवेकानंद की कविता

काली माता: स्वामी विवेकानंद की कविता

काली माता: स्वामी विवेकानंद

छिप गये तारे गगन के,
बादलों पर चढ़े बादल,
काँपकर गहरा अंधेरा,
गरजते तूफान में, शत
लक्ष पागल प्राण छूटे
जल्द कारागार से–द्रुम
जड़ समेत उखाड़कर, हर
बला पथ की साफ़ करके।

शोर से आ मिला सागर,
शिखर लहरों के पलटते
उठ रहे हैं कृष्ण नभ का
स्पर्श करने के लिए द्रुत,
किरण जैसे अमंगल की
हर तरफ से खोलती है
मृत्यु-छायाएँ सहस्रों,
देहवाली घनी काली।

आधिन्याधि बिखेग्ती, ऐ
नाचती पागल हुलसकर
आ, जननि, आ जननि, आ, आ!
नाम है आतंक तेरा,
मृत्यु – तेरे श्वास में है,
चरण उठकर सर्वदा को
विश्व एक मिटा रहा है,
समय तू है, सर्वनाशिनि,
आ, जननि, आ, जननि, आ, आ!

साहसी, जो चाहता है
दुःख, मिल जाना मरण से,
नाश की गति नाचता है,
माँ उसी के पास आयी।

~ स्वामी विवेकानंद

‘काली माता’ स्वामी जी की अँग्रेज़ी कविता, ‘Kali the Mother’ का अनुवाद है। नीचे हम मूल कविता भी प्रकाशित कर रहे हैं ताकि आप मूल कविता भी पढ़ सकें।

Kali the Mother: Poem by Swami Vivekananda

The stars are blotted out,
The clouds are covering clouds.
It is darkness vibrant, sonant.
In the roaring, whirling wind
Are the souls of a million lunatics
Just loosed from the prison-house,
Wrenching trees by the roots,
Sweeping all from the path.
The sea has joined the fray,
And swirled up mountain-waves,
To reach the pitchy sky.
The flash of lurid light
Reveals on every side
A thousand, thousand shades
Of Death begrimed and black –
Scattering plagues and sorrows,
Dancing mad with joy,
Come, Mother, come!
For terror is Thy name,
Death is in thy breath,
And every shaking step
Destroys a world for e’er.
Thou Time, the All-destroyer!
Come, O Mother, come!
Who dares misery love,
And hug the form of Death,
Dance in destruction’s dance
To him the Mother comes.

~ Swami Vivekananda

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