हिल उठे जिनसे समुंदर‚
हिल उठे दिशि और अंबर
हिल उठे जिससे धरा के!
वन सघन कर शब्द हर–हर!
उस बवंडर के झकोरे
किस तरह इंसान रोके!
कौन यह तूफान रोके!
उठ गया‚ लो‚ पांव मेरा‚
छुट गया‚ लो‚ ठांव मेरा‚
अलविदा‚ ऐ साथ वालो
और मेरा पंथ डेरा;
तुम न चाहो‚ मैं न चाहूं‚
कौन भाग्य–विधान रोके!
कौन यह तूफान रोके!
आज मेरा दिल बड़ा है‚
आज मेरा दिल चढ़ा है‚
हो गया बेकार सारा‚
जो लिखा है‚ जो पढ़ा है‚
रुक नहीं सकते हृदय के‚
आज तो अरमान रोके!
कौन यह तूफान रोके!
आज करते हैं इशारे‚
उच्चतम नभ के सितारे‚
निम्नतम घाटी डराती‚
आज अपना मुह पसारे;
एक पल नीचे नजर है‚
एक पल ऊपर नजर है;
कौन मेरे अश्रु थामे‚
कौन मेरे गान रोके!
कौन यह तूफान रोके!