कवि का पत्र प्रेमिका को – बालस्वरूप राही

आह, कितनी हसीन थीं रातें
जो तड़पते हुए गुज़ारी थीं
तुम न मानो मगर यही सच है
मुझसे ज्यादा तो वे तुम्हारी थीं।

थपथपाता था द्वार जब कोई
आ गईं तुम, गुमान होता था
उन दिनों कुछ अजीब हालत थी
जागता भी न था, न सोता था।

भोर आए तो यों लगे मुझको
वह तुम्हारा सलाम लाई है
दिन जो डूबे तो सोचता था मैं
तुमने भेजा तो शाम आई है।

आह, वे नीम के घने साए
हम जहां छिप के रोज़ मिलते थे
देख मुझको तुम्हारी आँखों में
कितने ताज़ा गुलाब खिलते थे।

और कॅलेज के लॉन की वह दूब
छू तुम्हें किस तरह महकती थी
रूप का प्राण वह तुम्हारा था
तेज की लालिमा दहकती थी।

किस कदर दिल फरेब लगता था
नीली आँखों में सुरमई काजल
सांवले केश और मुख पर ज्यों
बर्फ छाए पहाड़ पर बादल।

शेक्सपीयर का जिक्र था शायद
तुमने मुझसे कहा था शरमा कर
ज़िंदगी कितनी बेमज़ा होती
जन्म लेते नहीं अगर शायर।

तुम मगर मुझसे प्यार करते हो
एक कविता मुझे नज़र कर दो
छन्द में गूंथ लो सुमन की तरह
हो जो शायर, मुझे अमर कर दो।

यह तो औरत की ख़ास आदत है
वह जो कहती न खुद समझती है
ज़िंदगी के यथार्थ से तो कम
कल्पना से अधिक उलझती है।

और उस रोज़ यह सुना मैंने
जिंदगी ने तुम्हें भी बींध दिया
आँसुओं में न डूब पाईं तुम
और सुख ने तुम्हें खरीद लिया।

वक्त की मार सह नहीं सकता
प्यार तो रेत का घरौंदा है
जो भी चाहे खरीद ले इसको
आदमी सिर्फ एक सौदा है।

मैं न तुमको खरीद सकता था
क्यों कि मैं तो स्वयं बिका ही नहीं
जिसकी कीमत हज़ार रुपये हो
गीत ऐसा कोई लिखा ही नहीं।

तुमको शीराज़ की निगाहों से
ताज़ ज्यादा हसीन लगता था
तुमको भाती थीं रेशमी कलियाँ
और मैं आग था, सुलगता था।

मुझको तुमसे न कुछ शिकायत है
किंतु इतना जरूर कहता हूँ
घर जो तुमने स्वयं सजाया था
मैं वहां अजनबी सा रहता हूँ।

हर तरफ् दर्द है उदासी है
अब तो खुद से ही ऊबता है दिल
इतना ज्यादा गहन अंधेरा है
हाय! रह रह के डूबता है दिल।

बस यही आख़िरी तमन्ना है
मैं मिटूँ किंतु तुम सँभल जाओ
पत्र यह भेजता तुम्हीं को हूँ
हो सके तो जरा बदल जाओ।

∼ बालस्वरूप राही

About Bal Swaroop Rahi

बालस्वरूप राही जन्म– १६ मई १९३६ को तिमारपुर, दिल्ली में। शिक्षा– स्नातकोत्तर उपाधि हिंदी साहित्य में। कार्यक्षेत्र: दिल्ली विश्विद्यालय में हिंदी विभागाध्यक्ष के साहित्यिक सहायक, लेखन, संपादन व दूरदर्शन के लिये लगभग तीस वृत्तिचित्रों का निर्माण। कविता, लेख, व्यंग्य रचनाएँ, नियमित स्तंभ, संपादन और अनुवाद के अतिरिक्त फिल्मों में पटकथा व गीत लेखन। प्रकाशित कृतियाँ: कविता संग्रह- मौन रूप तुम्हारा दर्पण, जो नितांत मेरी है, राग विराग। बाल कविता संग्रह- दादी अम्मा मुझे बताओ, जब हम होंगे बड़े, बंद कटोरी मीठा जल, हम सबसे आगे निकलेंगे, गाल बने गुब्बारे, सूरज का रथ आदि।

Check Also

National Philosophy Day: Date, History, Wishes, Messages, Quotes

National Philosophy Day: Date, History, Wishes, Messages, Quotes

National Philosophy Day: This day encourages critical thinking, dialogue, and intellectual curiosity, addressing global challenges …