इस देहाती गाने का स्वर
ककड़ी के खेतों से उठकर, आता जमुना पर लहराता
कोई पार नदी के गाता
होंगे भाई-बंधु निकट ही
कभी सोचते होंगे यह भी
इस तट पर भी बैठा कोई, उसकी तानों से सुख पाता
कोई पार नदी के गाता
आज न जाने क्यों होता मन
सुन कर यह एकाकी गायन
सदा इसे मैं सुनता रहता, सदा इसे यह गाता जाता
कोई पार नदी के गाता