क्षुद्र की महिमा - श्यामनंदन किशोर

क्षुद्र की महिमा – श्यामनंदन किशोर

शुद्ध सोना क्यों बनाया, प्रभु मुझे तुमने,
कुछ मिलावट चाहिये गलहार होने के लिये!

जो मिला तुममें, भला क्या
भिन्नता का स्वाद जाने,
जो नियम में बँध गया, वह
क्या भला अपवाद जाने,
जो रहा समकक्ष, करुणा की मिली कब छाँह उसको,
कुछ गितरावट चाहिये उद्धार होने के लिये।

जो अजन्में हैं, उन्हें इस
इंद्रधनुषी विश्व से संबंध ही क्या!
जो न पीड़ा झेल पाये स्वयं कभी भी
दूसरों के हेतु उनको द्वन्द्व ही क्या!
एक सृष्टा शून्य को श्रृंगार सकता है
मोह कुछ तो चाहिये साकार होने के लिये!

वाद्य यन्त्र न दृष्टि पथ, पर हो
मधुर झंकार लगती और भी!
विरह के मधुवन सरीखे दीखते
हैं क्षणिक सहवास वाले ठौर भी!
साथ रहने पर नहीं होती सही पहचान
चाहिये दूरी तनिक, अधिकार होने के लिये!

∼ श्यामनंदन किशोर

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