मेरे बालों में चांदी आ गई, क्या तुम न आओगे
नज़र में मोतिया उतरा, हुआ हूं कान से बहरा
तुम्हारी ही जवानी खा गई, क्या तुम न आओगे
तुम्हारे मायके से आने वाली राह तक–तक कर
मेरी तो आंख भी पथरा गई, क्या तुम न आओगे
न बेलन ही बरसता है, न अब चिमटा खड़कता है
रसोई में उदासी छा गई, क्या तुम न आओगे
मेरी सारी कमाई लुट गई, ढाबों में खा खा कर
लो अब फ़ाकों की नौबत आ गई, क्या तुम न आओगे
तुम्हारा दामने–उम्मीद बच्चों से भरा मैंने
मगर मेरी कली मुर्झा गई, क्या तुम न आओगे
बड़ी अम्मा से दिल की बेकली अपनी बयां कर के
मेरी आवाज़ भी भर्रा गई, क्या तुम न आओगे