क्यों नहीं देखते
इन तारों की तरफ
ये तो विद्यमान हैं हर जगह
इन्हे तो पता हैं सारे मार्ग
जब आक्रोश उत्त्पन्न होता है
तुम्हारे हृदय में
वेदना कसकती है और
क्रोध किसी को जला डालना चाहता है
क्यों नहीं देखते
सूरज की तरफ
ये भी नाराज़ है बरसों से
पता नहीं किस पर गुस्सा निकालना चाहता है
रोज आता है और आग
बरसा के चला जाता है
क्रोध की तपिश जब
ह्रदय जलाने लगती है
और अधजले सपने, धुंआ देने लगते हैं
तब तुम
क्यों नहीं देखते
इस चाँद की तरफ
ये शांत बैठा न जाने
क्या सपना बुनता रहता है
जब जिंदगी रंगहीन लगने लगती है
व्यर्थ लगने लगते हैं
जिंदगी के मायने
क्यों नहीं देखते
बादलों में इन्द्रधनुष की तरफ
इसके सात रंग सात सपने हैं
जो बुने हैं इसने अभी कुछ देर पहले
बारिश में भीगते हुए
कहीं छिपकर किसी टाट की आड़ में
भुट्टा खाते हुए
तुम्हे क्यों लगता है
तुम कुछ अनोखे हो
जैसे लाया मैं तुम्हे इस दुनिया में
वैसे ही बनाया है इन्हें भी
इन्हें भी दिए मैंने सपने
कुछ टूटे इनके भी अरमान
नादान हो जो तुम हिम्मत हारते हो
यह प्रकृति बहुत कुछ सीखा सकती है
सपनों का बनना और टूटना
एक सतत प्रक्रिया है
नद्य-नीर सा प्रवाह है इसमें
कहीं कोई रुकाव नहीं, कहीं कोई ठहराव नहीं……