नयन का सावन निमंत्रण दे रहा है।
आज बिसराकर तुम्हें कितना दुखी मन‚ यह कहा जाता नहीं है
मौन रहना चाहता‚ पर बिन कहे भी अब रहा जाता नहीं है
मीत अपनों से बिगड़ती है‚ बुरा क्यों मानती हो
लौट आओ प्राण! पहले प्यार की सौगंध तुमको
प्रीत का बचपन निमंत्रण दे रहा है।
रूठता है रात को भी चांद से कोई‚ और मंजिल से चरन भी
रूठ जाते डाल से भी फूल अगनित‚ नींद से गीले नयन भी
बन गई है बात कुछ ऐसी कि मन में चुभ गई‚ तो
लौट आओ माननी! है प्यार की सौगंध तुमको
बात का निर्धन निमंत्रण दे रहा है।
चूम लूं मंजिल‚ यही मैं चाहता पर तुम बिना पग क्या चलेगा?
मांगने पर मिल न पाया स्नेह तो यह प्राण–दीपक क्या जलेगा?
यह न जलता‚ किंतु आशा कर रही मजबूर इसको
लौट आओ बुझ रहे इस दीप की सौगंध तुमको
ज्योति का कण–कण निमंत्रण दे रहा है।
दूर होती जा रही हो तुम लहर–सी‚ है विवश कोई किनारा
आज पलकों में समाया जा रहा है‚ सुरमई आंचल तुम्हारा
हो न जाए आंख से ओझल महावर और मेंहदी‚
लौट आओ‚ सतरंगी श्रिंगार की सौगंध तुमको
अनमना दर्पण निमंत्रण दे रहा है।
कौन–सा मन हो चला गमगीन जिससे सिसकियां भरती दिशाएं
आंसुओं का गीत गाना चाहती हैं नीर से बोझिल घटाएं
लो घिरे बादल‚ लगीं झड़ियां‚ मचलती बिजलियां भी
लौट आओ हारती मनुहार की सौगंध तुमको
यह अकेला मन निमंत्रण दे रहा है।