सर्वोत्तम् अजेयम्
दसो दिशाएं आगे आ
सब इसको करते प्रणाम
खुशहाली वैभवशाली
समृद्धियाँ निराली
धन्य धन्य है यहाँ प्रजा
शक्ति का ये स्वर्ग था
घन गरज जो किलके यहाँ
दिग दिगंत में है कहाँ
शीश तो यहाँ झुका ज़रा
यशास्वीनी है ये धरा
महिष्मति की पताका
सदा यूँही गगन चूमे
अश्व दो और सूर्य देव मिलके
स्वर्ग सिंघासन विराजे
~ मनोज मुन्ताशिर
आपको मनोज मुन्ताशिर का यह गीत “माहिष्मती साम्राज्यम्:” कैसा लगा – आप से अनुरोध है की अपने विचार comments के जरिये प्रस्तुत करें। अगर आप को यह कविता अच्छी लगी है तो Share या Like अवश्य करें।
यदि आपके पास Hindi / English में कोई poem, article, story या जानकारी है जो आप हमारे साथ share करना चाहते हैं तो कृपया उसे अपनी फोटो के साथ E-mail करें। हमारी Id है: submission@sh035.global.temp.domains. पसंद आने पर हम उसे आपके नाम और फोटो के साथ यहाँ publish करेंगे। धन्यवाद!