आया बिरज का बांका, संभाल तेरी गगरी रे
हो.. आया बिरज का बांका संभाल तेरी गगरी रे – 2
देखो अरे देखो कहीं ऐसा न हो जाए
चोरी करे माखन तेरा जिया भी चुराए
अरे धमकता है इतना तू किसको
डरता है कौन आने दे उसको
ऐसे न बहुत बोलो
मत ठुमक ठुमक डोलो
चिल्लाओगी बहुत गोरी,
जब उलट देगा तोरी,
गगरी आ के बीच डगरी रे
मच गया शोर सारी नगरी रे…
जाने क्या करता अगर होता कहीं गोरा
जा के जमुना में ज़रा शक्ल देखे छोरा
बिंदिया चमकाती रस्ते में न जा
मनचला भी है गोकुल का राजा
मनचला भी है गोकुल का राजा
पड़ जाये नहीं पाला राधा से कहीं लाला
फिर रोयेगा गोविंदा, मारेंगी ऐसा फंदा
गरदन से बंधेगी ऐसी चुनरी रे
मच गया शोर सारी नगरी रे…
आला रे आला गोविंदा आला
आला रे आला गोविंदा आला
~ मजरुह सुल्तानपुरी
Singers: Kishore Kumar, Lata Mangeshkar
Actors: Parveen Babi, Amitabh Bachchan
Film: Khuddaar (1982)
मजरूह सुल्तानपुरी के बारे में बेहद खास बातें…
मजरूह सुल्तानपुरी, एक नाम जो सबसे पहले तो रेडियो की एक छूटी-बिसरी बचपन की आवाज याद दिलाता है… गीत लिखा है मजरूह सुल्तानपुरी ने…
मजरूह 50 और 60 के दशक के हिंदी संगीत की रूह थे। कितने और कैसे-कैसे मर्मस्पर्शी गाने लिखे उन्होंने। आइए उनके कुछ स्वर सफर के मील पत्थर निहारें।
- नाम था असरार उल हसन खान। मगर दुनिया ने मजरूह सुल्तानपुरी के नाम से जाना।
- पैदाइश की जगह, उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ दिले का निजामाबाद गांव। यहां उनके अब्बा पुलिस महकमे में तैनात थे। पुरखों की असल जमीन सुल्तानपुर में थी। बहरहाल, पैदाइश की तारीख 1 अक्टूबर, 1919
- नौशाद से लेकर अनु मलिक और जतिन ललित, एआर रहमान और लेस्ली लेविस तक के साथ काम किया।
- 1965 में फिल्म ‘दोस्ती’ के गाने ‘चाहूंगा मैं तुझे सांझ सवेरे’ के लिए फिल्मफेयर अवॉर्ड जीता।
- 1993 में दादा साहब फाल्के अवॉर्ड से नवाजे गए।
- बाप नहीं चाहते थे कि बेटा अंग्रेजी सीखे। इसलिए उन्हें मदरसे में भेज दिया गया। यहां उन्होंने अरबी और फारसी जबान सीखी। मजरूह के पिता पुलिस डिपार्टमेंट में काम किया करते थे।
- आलिम बनने के बाद वह लखनऊ पहुंचे। यूनानी चिकित्सा पद्धति सीखने। फिर एक दिन इस असफल हकीम की किस्मत ने करवट ली। वह सुल्तानपुर के एक मुशायरे में अपनी गजल सुना बैठे। लोगों की दाद उन्हें इतनी सच्ची और हौसलाबख्श लगी कि उन्होंने तय कर लिया कि बहुत हुआ नाड़ी जांचने का काम।
- उन्होंने मुशायरों में आमद बढ़ा दी। जिगर मुरादाबादी की शागिर्दी भी शुरू कर दी। ‘मैं अकेला ही चला था जानिब ए मंजिल मगर, लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया।’
- 1945 में मजरूह एक मुशायरे में शामिल होने के लिए बॉम्बे आए। उनकी गजलों और नज्मों को लोगों ने खूब पसंद किया। सुनने वालों में एक थे प्रॉड्यूसर एआर कारदार। मजरूह के बोल सुनकर कारदार पहुंच गए उनके गुरु जिगर मुरादाबादी के पास। सिफारिश के लिए। मगर मजरूह ने फिल्मों के लिए लिखने से इनकार कर दिया। अदबी तबके में उन दिनों इस तरह के काम को हल्का माना जाता था।
- फिर जिगर ने समझाया। इसमें पैसा अच्छा है। परिवार को मदद हो जाएगी।
- फिर कारदार मजरूह को नौशाद के पास ले गए। उन्होंने मजरूह को एक ट्यून सुनाई और कहा, इसके मीटर पर कुछ लिखो। मजरूह ने लिखा, ‘जब उसने गेसू बिखराए, बादल आए झूम के।’ नौशाद को ये लफ्ज पसंद आए और उन्हें फिल्म ‘शाहजहां’ के लिए बतौर गीतकार रख लिया गया। इसी में केएल सहगल ने गाया, ‘जब दिल ही टूट गया’। सहगल चाहते थे कि उनकी आखिरी यात्रा में यही गाना बजे।
- मजरूह का फिल्मी सफर शुरू हो गया। महबूब का अंदाज, शाहिद लतीफ की आरजू। पर तरक्कीपसंद खेमे के साथ उनका जुड़ाव उनके बागी तेवरों में नजर आया।
- 1949 में उन्हें बलराज साहनी जैसे कई वामपंथियों के साथ जेल में डाल दिया गया। उनसे कहा गया कि माफी मांगो, वर्ना दो साल की जेल होगी। जेल में रहने के दौरान ही उनकी बड़ी बेटी हुई। परिवार पर आर्थिक संकट आ गया। तब राज कपूर ने मजरूह का लिखा ‘दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई’ खरीदा और परिवार को उस वक्त हजार रुपये दिए इसके ऐवज में।
- पहले गीतकार थे, जिन्हें दादासाहब फाल्के मिला।
- 24 मई, 2000 को उनका निधन हो गया। वजह बना न्यूमोनिया का अटैक। उस वक्त उनकी उम्र थी 80 बरस।