हे री मैं तो प्रेम दिवानी: मीरा बाई एक मध्यकालीन हिन्दू आध्यात्मिक कवियित्री और कृष्ण भक्त थीं। वे भक्ति आन्दोलन के सबसे लोकप्रिय भक्ति-संतों में एक थीं। भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित उनके भजन आज भी उत्तर भारत में बहुत लोकप्रिय हैं और श्रद्धा के साथ गाये जाते हैं।
हे री मैं तो प्रेम दिवानी: मीरा बाई
हे री मैं तो प्रेम दिवानी
मेरो दरद न जाने कोय
सूली ऊपर सेज हमारी
किस विध सोना होय
गगन मंडल पै सेज पिया की
किस विध मिलना होय
घायल की गति घायल जाने
की जिन लाई होय
जौहरी की गति जौहरी जानै
कि जिन जौहर होय
दरद की मारी बन–बन डोलूँ
बैद मिला नहीं कोय
मीरा की प्रभु पीर मिटैगी
जब बैद संवलिया होय
~ मीरा बाई
मीरा का जन्म राजस्थान के एक राजघराने में हुआ था। मीरा बाई के जीवन के बारे में तमाम पौराणिक कथाएँ और किवदंतियां प्रचलित हैं। ये सभी किवदंतियां मीराबाई के बहादुरी की कहानियां कहती हैं और उनके कृष्ण प्रेम और भक्ति को दर्शाती हैं। इनके माध्यम से यह भी पता चलता है की किस प्रकार से मीराबाई ने सामाजिक और पारिवारिक दस्तूरों का बहादुरी से मुकाबला किया और कृष्ण को अपना पति मानकर उनकी भक्ति में लीन हो गयीं। उनके ससुराल पक्ष ने उनकी कृष्ण भक्ति को राजघराने के अनुकूल नहीं माना और समय-समय पर उनपर अत्याचार किये।
तुलसीदास के कहने पर की राम की भक्ति
इतिहास में कुछ जगह ये मिलता है कि मीरा बाई ने तुलसीदास को गुरु बनाकर रामभक्ति भी की। कृष्ण भक्त मीरा ने राम भजन भी लिखे हैं, हालांकि इसका स्पष्ट उल्लेख कहीं नहीं मिलता है, लेकिन कुछ इतिहासकार ये मानते हैं कि मीराबाई और तुलसीदास के बीच पत्रों के जरिए संवाद हुआ था। माना जाता है मीराबाई ने तुलसीदास जी को पत्र लिखा था कि उनके घर वाले उन्हें कृष्ण की भक्ति नहीं करने देते। श्रीकृष्ण को पाने के लिए मीराबाई ने अपने गुरु तुलसीदास से उपाय मांगा। तुलसी दास के कहने पर मीरा ने कृष्ण के साथ ही रामभक्ति के भजन लिखे। जिसमें सबसे प्रसिद्ध भजन है पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।