सियारामशरण गुप्त हिन्दी कविता: मैं तो वही खिलौना लूँगा

सियारामशरण गुप्त हिन्दी कविता: मैं तो वही खिलौना लूँगा

‘मैं तो वही खिलौना लूँगा’
मचल गया दीना का लाल
खेल रहा था जिसको लेकर
राजकुमार उछाल–उछाल।

व्यथित हो उठी माँ बेचारी –
था सुवर्ण – निर्मित वह तो!
‘खेल इसी से लाल, – नहीं है
राजा के घर भी यह तो!’

‘राजा के घर! नहीं नहीं माँ
तू मुझको बहकाती है,
इस मिट्टी से खेलेगा क्यों
राजपुत्र, तू ही कह तो?’

फेंक दिया मिट्टी में उसने
मिट्टी का गुड्डा तत्काल
‘मैं तो वही खिलौना लूँगा’ –
मचल गया दीना का लाल

‘मैं तो वही खिलौना लूँगा’
मचल गया शिशु राजकुमार, –
वह बालक पुचकार रहा था
पथ में जिसको बारंबार

‘वह तो मिट्टी का ही होगा,
खेलो तुम तो सोने से’
दौड़ पड़े सब दास – दासियाँ
राजपुत्र के रोने से।

मिट्टी का हो या सोने का,
इनमें वैसा एक नहीं
खेल रहा था उछल–उछल कर
वह तो उसी खिलौने से।

राजहठी ने फेंक दिए सब
अपने रजत – हेम – उपहार,
‘लूँगा वही, वही लूँगा मैं! ‘
मचल गया वह राजकुमार।

~ सियारामशरण गुप्त

आपको सियारामशरण गुप्त जी की यह कविता कैसी लगी – आप से अनुरोध है की अपने विचार comments के जरिये प्रस्तुत करें। अगर आप को यह कविता अच्छी लगी है तो Share या Like अवश्य करें।

यदि आपके पास Hindi / English में कोई poem, article, story या जानकारी है जो आप हमारे साथ share करना चाहते हैं तो कृपया उसे अपनी फोटो के साथ E-mail करें। हमारी Id है: submission@sh035.global.temp.domains. पसंद आने पर हम उसे आपके नाम और फोटो के साथ यहाँ publish करेंगे। धन्यवाद!

Check Also

World Thinking Day: Date, Theme, History, Significance, WAGGGS

World Thinking Day: Date, Theme, History, Significance, WAGGGS

World Thinking Day is also known as Thinking Day and is observed on 22 February …