मन करता है प्रिये, तुम्हें
हर दिन गीत नया सुनाऊँ।
गीत नए हों, स्वर नए हों
तुम्हें समर्पित उदगार नए हों
उदगारों को भाषा देकर
तुम पर अपना सर्वस्व लुटाऊँ।
मन करता है प्रिये, तुम्हें
हर दिन गीत नया सुनाऊँ।
फूलों से खुशबू ले लूं
तितली से लूं इठलाना
नदिओं से शीतलता ले लूं
सागर से गहराना
झरनों से स्वर – लहरी ले लूं
वर्षा से इतराना
सबको अपने स्वर में पिरोकर
संगीत नया बनाऊँ।
मन करता है प्रिये, तुम्हें
हर दिन गीत नया सुनाऊँ।
तुम्हारे उर की सतत प्यास को
अधरों को अधरों पर रखकर में बुझाऊँ।
मन करता है प्रिये, तुम्हें
हर दिन गीत नया सुनाऊँ।
∼ सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा
डी-184, श्याम आर्क एक्सटेंशन साहिबाबाद,
उत्तर प्रदेश – 201005
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