मन को वश में करो, फिर चाहे जो करो: रमानाथ अवस्थी

मन को वश में करो, फिर चाहे जो करो: रमानाथ अवस्थी

रमानाथ अवस्थी का जन्म फतेहपुर, उत्तरप्रदेश में हुआ। इन्होंने आकाशवाणी में प्रोडयूसर के रूप में वर्षों काम किया। ‘सुमन- सौरभ, ‘आग और पराग, ‘राख और शहनाई तथा ‘बंद न करना द्वार इनकी मुख्य काव्य-कृतियां हैं। ये लोकप्रिय और मधुर गीतकार हैं। इन्हें उत्तरप्रदेश सरकार ने पुरस्कृत किया है।

मन की चंचलता सर्व विदित है। अध्यात्म सागर पर भी कई बार लोग प्रश्न करते है कि मन को कैसे वश में किया जाये। क्या करें कि मन हमारे काबू में रहे। तो आइये जानते है कि मन को अपने काबू में कैसे रखा जा सकता है:

सबसे पहला काम, जो आपको करना है वो है “अपने मन को समझना”। खुद को मन से अलग करना। जब तक आप आत्मा और मन, भावना और इच्छा में भेद नहीं कर लेते, आप अपने मन को काबू में नहीं कर सकते। वास्तव में मन का कोई स्वतन्त्र अस्तित्व है ही नहीं। आपके ही कुछ आदतों, इच्छाओं और संस्कारों के समुच्चय को मन कहते है । जिसका संचालन भी पूरी तरह से आपकी आत्मा या यूँ कह लीजिये कि आपके द्वारा ही किया जाता है।

मन को वश में करो, फिर चाहे जो करो: रमानाथ अवस्थी

मन को वश में करो
फिर चाहे जो करो।

कर्ता तो और है
रहता हर ठौर है
वह सबके साथ है
दूर नहीं पास है
तुम उसका ध्यान धरो
फिर चाहे जो करो।

सोच मत बीते को
हार मत जीते को
गगन कब झुकता है
समय कब रुकता है
समय से मत लड़ो
फिर चाहे जो करो।

रात वाल सपना
सवेरे कब अपना
रोज़ यह होता है
व्यर्थ क्यों रोता है
डर के मत मरो
फिर चाहे जो करो।

∼ ‘फिर चाहे जो करो’ हिंदी कविता by रमानाथ अवस्थी

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