यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है।
सूर्य हमने भी नहीं देखा सुबह से,
क्या करोगे सूर्य का क्या देखना है।
इस सड़क पर इस कदर कीचड़ बिछी है,
हर किसी का पाँँव घुटनों तक सना है।
पक्ष औ’ प्रतिपक्ष संसद में मुखर हैं,
बात इतनी है कि कोई पुल बना है।
रक्त वर्षों से नसों में खौलता है,
आप कहते है क्षणिक उत्तेजना है।
हो गई हर घाट पर पूरी व्यवस्था,
शौक से डूबे जिसे भी डूबना है।
दोस्तो अब मंच पर सुविधा नहीं है,
आजकल नैपथ्य में संभावना है।
∼ दुष्यंत कुमार
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