सजीसंवरी थी प्रातें
बिसरा मन का सूनापन
पाई थीं सतरंगी सौगातें
तनहा सी एक दुपहरी में
आए थे बादल मंडराते
भर अंक में की थी तुम ने
स्नेह की निर्झर बरसातें
ढलती थी सांझ सुरमई
पलपल प्यार को पाते
बातें करते कट जाती थीं
महकी चहकी वो रातें
किस से कहते – कैसे कहते
मीत तुम्हारी वो बातें
कैसे सुनहले दिन बीते
कैसी बीतीं रुपहली रातें
~ डॉक्टर पारुल तोमर
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