मेरा खरापन शेष है।
वृक्ष था मैं एक‚ पतझड़ में रहा मधुमास सा‚
पत्र–फल के बीच यह जीवन जिया सन्यास सा‚
कोशिशें बेशक मुझे जड़ से मिटाने को हुईं‚
मेरा हरापन शेष है।
सीख पाया मैं नहीं इस दौर जीने की कला‚
धोंट पाया स्वार्थ पल को भी नहीं मेरा गला‚
गागरें रीतीं न मेरी किसी प्यासे घाट पर‚
मेरा भरापन शेष है।
~ सूर्यकुमार पांडेय
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