मैंने अक्सर यह देखा है मेरी थकन उतर जाती है।
कोई ठोकर लगी अचानक
जब-जब चला सावधानी से,
पर बेहोशी में मंजिल तक
जा पहुँचा हूँ आसानी से;
रोने वाले के अधरों पर अपनी मुरली धर देने से
मैंने अक्सर यह देखा है, मेरी तृष्णा मर जाती है।
प्यासे अधरों के बिन परसे
पुण्य नहीं मिलता पानी को,
याचक का आशीष लिये बिन
स्वर्ग नहीं मिलता दानी को;
खाली पात्र किसी का अपनी प्यास बुझा कर भर देने से
मैंने अक्सर यह देखा है, मेरी गागर भर जाती है।
लालच दिया मुक्ति का जिसने
वह ईश्वर पूजना नहीं है,
बन कर वेदमंत्र-सा मुझको
मंदिर में गूँजना नहीं है;
संकटग्रस्त किसी नाविक को निज पतवार थमा देने से
मैंने अक्सर यह देखा है, मेरी नौका तर जाती है।
∼ रामावतार त्यागी
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