माँ! मैं जीना चाहती हूँ।
तेरे आँगन की बगिया में
चाहती हूँ मैं पलना,
पायल की छमछम
करती, चाहती मैं भी
चलना।
तेरी आँखों का तारा बन
चाहती झिलमिल करना,
तेरी सखी सहेली बन चाहती बातें करना।
तेरे आँगन की तुलसी बन,
तुलसी सी चाहती मैं हूँ बढ़ना,
मान तेरे घर का बन माँ! चाहती मैं भी पढ़ना।
मिश्री से मीठे बोल, बोलकर चाहती मैं हूँ गाना,
तेरे प्यार-दुलार की छाया चाहती मैं भी पाना।
चहक-चहक कर चिड़िया सी चाहती मैं हूँ उड़ना,
महक-महक कर फूलों सी चाहती मैं भी खिलना।
~ श्रेया गौर (छठी ‘स’) St. Gregorios School, Sector 11, Dwarka, New Delhi – 110075
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